Skip to main content

I SEMESTER Study Material


साहित्य की महत्ता
Short Answers (4M):
1 साहित्य किसे कहते है ? इसका शास्त्र से क्या संबंध है ?
      मनुष्य अपने भावों और विचारों को वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, और समाज का प्रतिनिधि बनकर समाज का चित्र बनाया करता है । यही वाणी की अभिव्यक्ति अथवा शब्द चित्र को साहित्य कहते हैं ।
      भाषा का शास्त्र से संबंध रहता है । जैसे कि किसी जाति-विशेष की उत्कर्षापकर्ष का, उसके उच्च-नीच भावों का, उसके धार्मिक विचारों और सामाजिक संगठन का, उसके ऐतिहासिक घटना-चक्रों और राजनैतिक स्थितियों का प्रतिबिम्ब देखने को यदि कहीं मिल सकता है उसके ग्रन्थ-साहित्य में मिल सकता है ।
2 साहित्य की जीवन में क्या आवश्यकता है ? साहित्य द्वारा सभ्याता की परीक्षा किस प्रकार हो सकती है ?
     एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास में सदैव सहायक होता है । शरीर का खाध्य भोजनीय पदार्थ है और मस्तिष्क का खाध्य साहित्य । अच्छे साहित्य से उसका मस्तिष्क तो मजबूत होता है साथ ही साथ वह उन नैतिक गुणों को भी जीवन में उतार सकता है । जो उसे महानता की ओर ले जाता है । यह साहित्य की ही अद्भुत महान शक्ति है जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं । अतएव यह बात निर्भान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र-साधन अच्छा साहित्य है ।
      यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता के दौड में अन्य जातियों की बराबरी करना है तो हमें श्रमपूर्वक बडे उत्साह से सुसाहित्य का निर्माण करना चाहिए ।
3 विदेशी भाषाओं और साहित्यों के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए ?
      साहित्य में जो शक्ति छिपी रहती है वह तोप , तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पाई जाती । यूरप में हानिकारिणी धार्मिक रूढियों का उन्मूलन साहित्य ही ने किया है, जातीय स्वातंत्र्य के बीज उसी ने बोये हैं, व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के भावों को भी उसी ने पाला-पोसा और बढाया है ; पतित देशों का पुनरुत्तान भी उसी ने किया है । पोप की प्रभुता को साहित्य ने कम किया है । पादाक्रांत इटली का मस्तक साहित्य ने ऊंचा किया है ।
      जिस साहित्य में इतनी शक्ति है, जो साहित्य मुर्दों को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषध का आकार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्थितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो जाति नहीं करती वह अज्ञानांधकार के गर्त में पडी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है ।
4. साहित्य और विज्ञान विषय पर एक छोटा लेख लिखिए ।
      ज्ञान और विज्ञान से जीवन सुगम बना है, साहित्य जीवन को सुन्दर बनाता है । विज्ञान का काम है जीवन को शक्तिशाली तथा वैभवपूर्ण बनाना, साहित्य का काम है जीवन को सुन्दर तथा आकर्षक बनाना ।
Very short answers (2M):
1 “ साहित्य की महत्ता ” पाठ का लेखक कौन है ?
  साहित्य की महत्ता पाठ का लेखक श्री महावीर प्रसाद व्दिवेदी जी है ।
2 व्दिवेदी जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
  व्दिवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में सन् 1864 में हुआ था ।
3 द्विवेदी किस पत्रिका के संपादक बने तथा कितने वर्षों तक संपादक रहे ?
 व्दिवेदी ने सरस्वति पत्रिका के संपादक बने तथा बीस वर्षों तक बडी निष्ठा के साथ सरस्वती पत्रिका
 की सेवा की थी ।  
 4 व्दिवेदी जी कैसे लोकप्रिय हुए ?
   व्दिवेदी निबन्धकार के रूप में लोकप्रिय हुए ।
5 व्दिवेदी जी के कितने निबंध-संग्रह प्रकाशित हुए तथा वे क्या थे ?
  व्दिवेदी की लगबग 7 निबंध-संग्रह प्रकाशित हुए । वे- रसत्र रंजन’, सुकवि संकीर्तन’, साहित्य सीकर’, पुरातत्व प्रसंग’, हिन्दी महाभारत’, नैषध चरित‘, कालिदास की शकुंतला आदि ।
6    मनुष्य केलिए क्या आवश्यक है ?
      मनुष्य केलिए अन्य चीजों की तरह साहित्य भी आवश्यक है ।
7     मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को कैसे व्यक्त करता है ?
      मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को वाणी और साहित्य के माध्यम से व्यक्त करता है ।
8     साहित्य का सृजन किसका सूचक है ?
      साहित्य का सृजन स्भ्यता का सूचक है ।
9     साहित्य को परख कर हम किसकी परीक्षा ले सकते है ?
      साहित्य को परख कर हम समाज की परीक्षा ले सकते है ।  
10    साहित्य जीवन को कैसे बनाती है ?
      साहित्य जीवन को सुन्दर बनाती है ।
11    साहित्य-सेवा के कितने रूप है ? और वे क्या-क्या है ?
      साहित्य-सेवा के दो रूप हैं – साहित्य पठन तथा साहित्य निर्माण ।
पाठ का सारांश :
      प्रस्तुत पाठ “साहित्य की महत्ता” निबंध का लेखक अचार्य महावीर प्रसाद व्दिवेदी जी है । व्दिवेदी जी युग प्रवर्तक साहित्यकार है । खडीबोली हिंदी को संवारने में इनके योगदान बुलाया नहीं जा सकता है ।
      व्दिवदी का जन्म उत्तरप्रदेश के रायबरेली जिले के दौलत्पुर गाँव में सन् 1864 में हुआ था । उनको अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था ।
      उन्होंने सरस्वती के संपादक का कार्य 20 वर्षों तक बडी निष्ठा से की थी । निबंधकार के रूप में व्दिवेदी लोकप्रिय हुए । उनकी लगभग 7 निबंध संग्रह प्रकाशित हुए । वे- रसत्र रंजन’, सुकवि संकीर्तन’, साहित्य सीकर’, पुरातत्व प्रसंग’, हिन्दी महाभारत’, नैषध चरित‘, कालिदास की शकुंतला आदि । इनका निधन 1938 ई में हुई ।
      प्रस्तुत निबंध “साहित्य की महत्ता” में साहित्य की विविधमुखी महत्ता पर विचार किया है । अन्य चीजों की तरह साहित्य भी मनिष्य केलिए आवश्यक है । मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को वाणी और साहित्य के माध्यम से व्यक्त करता है । साहित्य सृजन सभ्यता का सूचक है । जो समाज जितना अधिक सभ्य होगा उतना ही उस समाज में साहित्य का अधिक आदर रहेगा । इसीलिए साहित्य को परख कर हम उस समाज की परीक्षा ले सकते है । ज्ञान-विज्ञान जीवन को सुगम बनाते हैं । साहित्य जीवन को सुन्दर बनाता है । विज्ञान का काम है जीवन को शक्तिशाली तथा वैभवपूर्ण बनाना, साहित्य का काम है जीवन को सुन्दर तथा आकर्षक बनाना । साहित्य-सेवा के दो रूप हैं – साहित्य पठन तथा साहित्य निर्माण ।
      जिस प्रकार घर बनाकर रहना, कपडे पहिनना आदि मानव-जीवन की आवश्यकताएँ हैं उसी प्रकार साहित्य-निर्माण सभ्य मानव केलिए अनिवार्य है ।
      मनुष्य अपने भावों और विचारों को वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त करता है, और समाज का प्रतिनिधि बनकर समाज का चित्र बनाया करता है । यही वाणी की अभिव्यक्ति अथवा शब्द चित्र को साहित्य कहते हैं ।
      भाषा का शास्त्र से संबंध रहता है । जैसे कि किसी जाति-विशेष की उत्कर्षापकर्ष का, उसके उच्च-नीच भावों का, उसके धार्मिक विचारों और सामाजिक संगठन का, उसके ऐतिहासिक घटना-चक्रों और राजनैतिक स्थितियों का प्रतिबिम्ब देखने को यदि कहीं मिल सकता है उसके ग्रन्थ-साहित्य में मिल सकता है ।
      एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास में सदैव सहायक होता है । शरीर का खाध्य भोजनीय पदार्थ है और मस्तिष्क का खाध्य साहित्य । अच्छे साहित्य से उसका मस्तिष्क तो मजबूत होता है साथ ही साथ वह उन नैतिक गुणों को भी जीवन में उतार सकता है । जो उसे महानता की ओर ले जाता है । यह साहित्य की ही अद्भुत महान शक्ति है जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं । अतएव यह बात निर्भान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र-साधन अच्छा साहित्य है ।
      यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता के दौड में अन्य जातियों की बराबरी करना है तो हमें श्रमपूर्वक बडे उत्साह से सुसाहित्य का निर्माण करना चाहिए ।
      साहित्य में जो शक्ति छिपी रहती है वह तोप , तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पाई जाती । यूरप में हानिकारिणी धार्मिक रूढियों का उन्मूलन साहित्य ही ने किया है, जातीय स्वातंत्र्य के बीज उसी ने बोये हैं, व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के भावों को भी उसी ने पाला-पोसा और बढाया है ; पतित देशों का पुनरुत्तान भी उसी ने किया है । पोप की प्रभुता को साहित्य ने कम किया है । पादाक्रांत इटली का मस्तक साहित्य ने ऊंचा किया है ।
      जिस साहित्य में इतनी शक्ति है, जो साहित्य मुर्दों को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषध का आकार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्थितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो जाति नहीं करती वह अज्ञानांधकार के गर्त में पडी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है ।
      निष्कर्ष: अतएव अपनी भाषा के साहित्य की सेवा और अभिवृद्धि करना, सभी दृष्टियों से हमारा परम धर्म है । 
**********
मित्रता
प्रश्नोत्तरी: 
1.    1.   मित्र बनाना क्यों स्वाभाविक है? मित्रता की धुन किस अवस्था में सबसे अधिक होती है?
      छात्रावस्था में तो मित्रता की धुन सवार रहती है । मित्रता हृदय से उमडी पडती है । पीछे के जो स्नेह-बन्धन होते हैं, उनमें न तो उतनी उमंग रहती है और न उतनी खिन्नता । बालमैत्री में जो मग्न करने वाला आनन्द होता है, जो हृदय को बेधने वाली ईर्ष्या और खिन्नता होती है, वह और कहाँ ? कैसी मधुरता और कैसी अनुरक्ति होती है, कैसा अपार विश्वास होता है । हृदय के कैसे-कैसे उद्गार निकलते हैं । वर्तमान कैसा आनन्दमय दिखाई पडता है और भविष्य के सम्बन्ध में कैसी लुभावने वाली कल्पनाएँ मन में रहती हैं ! कैसा बिगाड होता है और कैसी आर्द्रता के साथ मेल होता है ! कैसी क्षोभ से भरी बातें होती हैं और कैसी आवेगपूर्ण लिखा-पढी होती है । कितनी जल्दी बातें लगती हैं और कितनी जल्दी मानना-मनाना होता है ! सहपाठी की मित्रता इस उक्ति में हृदय के कितने भारी उथल-पुथल का भाव भरा हुआ है ।

2.     2.  मित्र बनाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
      मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में हमें दृढ करेंगे, दोषों और तृटियों से हमें बचावेंगे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम हतोत्साह होंगे तब हमें उत्साहित करेंगे; सारांश यह है कि वे हमें उत्तमता पूर्वक जीवन-निर्वाह करने में हर तरह से सहायता देंगे । सच्ची मित्रता में उत्तम-से-उत्तम वैध्य की-सी निपुणता और परख होती है, अच्छि-से-अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है । ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक युवा पुरुष को करना चाहिए।
      मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए जिस पर हम पूरा विश्वास कर सके । हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए – ऐसी सहानुभूति जिसमें दोनों मित्र एक-दूसरे की बराबर खोज-खबर लिया करें, ऐसी सहानुभूति जिससे  एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि लाभ समझे ।

3.      3.  सत्संगति के महत्व पर अपने विचार प्रकट कीजिए ।
      मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है । क्योंकि संगत का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बडा भारी पडता है । इसलिए जिस आयु में मित्र बनाना प्रारम्भ होता है उस आयु में यदि किसी हितैषी की सहायता मिल सके तो भविष्य अज्ज्वल बना रहता है ।
      संसार में अनेक महान पुरुष मित्रों की बदौलत बडे-बडे कार्य करने में समर्थहुए हैं। मित्रों ने उनके हृदय के उच्च भावों को सहारा दिया है । मित्रों ने कितने मनुष्यों के जीवनको साधु और श्रेष्ठ बनाया है । उन्हें मूर्खता और कुमार्ग के गड्डों से निकाल कर सात्विकता के पवित्र शिखर पर पहुँचाया है । मित्र उन्हें सुन्दर मंत्रणा और सहारा देने के लिए सदा उध्यत रहते हैं । ऐसे भी मित्र होते हैं जो विवेक को जगरित करना और कर्त्तव्य-बुद्धि को उत्तेजित करना जनते हैं । ऐसे भी मित्र होते हैं जो टूटे जी को जोडना और लडखडाते पाँवों को ठ्हराना जनते हैं । बहुतेरे मित्र हैं जो ऐसे दृड आशय और उद्देश्य की स्थापना करते हैं जिनेसे कर्मक्षेत्र में आप भी श्रेष्ठ बनते हैं ।

4.     4.  भारतीय इतिहास से आदर्श मित्रता के कुच्छ उदाहरण दीजिए ।
      राम धीर और शांत प्रकृति के थे, लक्षमण उग्र और उद्धत स्वभाव के थे, पर दोनों भाइयों में अत्यन्त प्रगाढ स्नेह था । उदार तथा उच्चाशय कर्ण और लोभी दुर्योधन के स्वभावों में कुछ विशेष समानता न थी, पर उन दोनों की मित्रता खूब निभी । यह कोई बात नहीं है कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों ही में मित्रता हो सकती है ।

      उच्च आकांक्षा वाला चन्द्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए चाणक्य का मुँह तकता था । नीति-विशारद अकबर मन बहलाने के लिये बीरबल की ओर देखता था । 

लघु प्रश्न:   

1.    1.  मित्रता पाठ का लेखक कौन है ?
   मित्रता पाठ का लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं ।

2.    2.  शुक्ल जी को किस विधा के साहित्य में ख्याती मिली है ?
   शुक्ल जी को निबंधकार के रूप में साहित्य में ख्याती मिली है ।

3.   3.   शुक्ल जी का जन्म किस राज्य में हुआ ?
    शुक्ल जी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य में हुआ ।

4    4. शुक्ल जी का जन्म कहॉ हुआ ?
   शुक्ल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना गाँव में हुआ । 

5    5.  शुक्ल जी का जन्म कब हुआ ?
     शुक्ल जी का  जन्म 4 अक्तूबर 1884 में हुआ । 

6    6. शुक्ल जी को कौनसी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था ?
     शुक्ल जी को हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था ।

7  7.  शुक्ल जी ने किस पत्रिका केलिये सम्पादक रह चुका है ?
    शुक्ल जी ने नागरी प्रकारिणी पत्रिका के लिए संपादक रह चुका है । 

8    8. शुक्ल जी ने किस यूनिवर्सिटी में हिंदी अध्यक्ष का पद सम्भाला ?
    शिक्ल जी ने काशी हिन्दू विश्व विध्यालय में हिन्दी अध्यक्ष का पद संभाला है । 

9    9. शुक्ल जी किस विषय को लेकर निबंध लिखे ?
    शुक्ल जी ने भाव और मनोविकारों पर निबंध लिखे है ।  

10.  शुक्ल जी के प्रिय कवि कौन है ?
शिक्ल जी के प्रिय कवि तुलसीदास है ।

1   11.  शुक्ल जी कि भाषा कैसी है ?
     शुक्ल जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है ।

1    12.   शुक्ल जी की प्रमुख रचनाएँ कोन सी है ?
        निबन्ध : चिन्तामणि (  दो भाग )
        आलोचना : रस-मीमांसा, सूरदास
          इतिहास : हिन्दी साहित्य का इतिहास
         सम्पादन : तुलसी ग्रंधावली, जायसी ग्रंधावली. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार ।

1   13.   मित्रता का विषय क्या है ?
    मित्रता जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया उच्चकोटी का निबंध है ।   


मुक्तिधन
                   मुन्शी प्रेमचंद
मुक्तिधन नामक कहानी का सारांश लिखकर उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
      उपन्यास साम्राट मुंशी प्रेमचंद एक युगनिर्माता कहानीकार भी रहे । आपने तीन सौ से अधिक कहानियों की रचना की । आप की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संगृहीत है । राष्ट्रीय चेतना भरी प्रारंभिक कहानियों का संग्रह सोजेवतन है । प्रेमाश्रम, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, सेवसादन, वरदान, दुर्गादास, मंगलसूत्र (अपूर्ण) और गोदान आपके उपन्यास हैं । उपन्यास और कहानी के अतिरिक्त नाटक, निबंध, बाल साहित्य एवं अनुवाद क्षेत्र में भी आपने अपनी लेखनी चलाई ।
प्रस्तावना :
      समसामयिक समस्याओं के यथार्थ चित्रण के साथ-साथ उस पर व्यंग करते हुए, पाठकों की दृष्टि आकृष्ट करना तथा मानव में निहित उदारता और सहृदयता को उभारते हुए एक सामाजिक आदर्श की ओर दिशा-निर्देश करना प्रेमचन्द की रचनाओं की एक अन्यतम विशेषता रही । आपकी कहानियों में यथार्थवाद, अति यथार्थवाद एवं आदर्शवाद की झलक मिलती है । मानवता और जीवन मूल्यों की चमक आपके पात्रों में दिखाई देती है ।
      समाज में धार्मिक सहिष्णुता, दूसरों के धार्मिक विश्वासों पर श्रद्धा एवं विश्वास, मानवता की भावना और उदारता पूर्ण व्यवहार की स्थापना “मुक्तिधन” नामक इस कहानी का लक्ष्य रहा । समाज की यथार्थ स्थिति, भारतीय किसानों की आर्थिक विडम्बना, महाजनों का शोषण आदि का व्यंगपूर्ण चित्रण करते हुए आदर्शोन्मुख मानवीय प्रवृत्तियों का शब्द चित्र प्रस्तुत करना इस कहानी की विशेषता रही । इस कहानी में सांप्रदायिक घेरे से और आर्थिक असमानता से ऊपर उठकर उदारतापूर्ण मानवीय व्यवहार का मनोरम अंकन किया गया है ।
परिवेश :
      भारत के गरीब किसानों की आर्थिक-दुर्दशा, महाजनों का शोषण, लेनदेन व्यवसाय को अन्य व्यवसायों से अत्यंत लाभदायक मानकर गरीब किसानों का खून चूसने वाली महाजनी व्यवस्था के यधार्थ एवं जीवंत चित्रण से कहानी का आरम्भ होता है ।

कथा वस्तु :
      लाला दाऊदयाल एक महाजन हैं । मुकतारगिरी करते हैं । बचत के पैसे 25-30 रुपये सैकड़ा वार्षिक ब्याज पर उधार देते हैं । उसका व्यवसाय अधिकतर निम्नस्तर के लोगों से ही रहता है ।
      कचहरी से घर जाते समय उनहोंने एक मोहिनी रूपवाली गाय बेचने को तैयार रहमान को देखा । वह बहुत दुखी था । अपने करूँ नेत्रों से गाय को देखते हुये दिल मसोसकर रह जाता था । पूछ-ताछ के बाद उन दोनों के बीच सौदा 35 रुपये पर तय हुआ । इसके बाद भी कुछ लोग 36 या 40 रुपये देने को भी तैयार हुए । लेकिन रहमान ने न कर दिया । क्योंकि वह अपने घर की लक्ष्मी जैसी गाय किसी कसाई की अपेक्षा एक हिन्दू (दाऊदयाल) को ही बेचना चाहता था ।
      जमींदार के इजाफा लगान के दावे की जवाब देही करने केलिए रहमान को रुपये की जरूरत थी । घर में बैलों के सिवा और कोई संपत्ति नहीं थी । अतः वह अपने प्राणों से प्रिय, घर की लक्ष्मी गऊ को बेचने को विवश हुआ ।
      हज जाने की अपनी बूढ़ी मटा की इच्छा पूरी करने केलिए वह दाऊदयाल से दो सौ रुपये दो साल की मीयाद पर उदार लेता है । माता की तबीयत बिगड़ जाने के कारण, ऊख बिना पानी के सुख जाने के कारण वह पैसा चुका नहीं सका । अपना दुखड़ा सुनाकर और एक साल का समय मांगा । 32 सैकड़े सूद पर एक साल का समय देने दाऊदयाल राजी हुए ।
      रहमान घर आये तो माँ परलोक सिधारी । अड़ोस पड़ोस के लोगों से पैसे उधार लेकर दफन-कफन का प्रबंध तो किया । लेकिन मृत आत्मा के संतोष के लिए कई संस्कार करने बाकी थे । अनेक संकल्प-विकल्पों के उपरांत फिर दाऊदयाल से ही कर्ज मांगने चला ।
      दाऊदयाल ने पहले रहमान से रुष्टतापूर्ण व्यवहार किया । लेकिन रहमान की दयनीय स्थिति पर दया करके दो सौ रुपये दिये । दाऊदयाल के व्यवहार से परिचित व्यक्ति उनकी इस उदारता से चकित हो गये ।
      उस साल खेती की हालत अत्यंत आशाजनक रही । रहमान की उम्मीद थी कि वह इस बार अवश्य पैसा चुका सकेगा । लेकिन आगा लग जाने से सारा खेत जलकर राख़ हो गया । दाऊदयाल का आदमी (चपरासी) रहमान को घसीटता हुआ ले चला । अल्लाह की दुआ माँगते हुए जैसे भी रहमान ने पाँच कोस का रास्ता तय किया । उसने अपनी दयनीय स्थिति बताकर अपनी हालत पर दया करने की पार्थना की ।
      पूरी हालत सुनने के बाद दाऊदयाल ने मुस्कुराते हुए पूछा कि “तुम्हारे माँ में इस वक्त सबसे बड़ी आरजू क्या है?” रहमान ने उत्तर दिया- यही हुजूर कि आपके रुपये अदा ही जाए । तुरंत दाऊदयाल ने कहा- अच्छा तो समझ लो तुम्हारे रुपये अदा हो गये। इसे रहमान स्वीकार नहीं करता और कहता है- मैं ऋण का बोझ सिरपर लेकर मारना नहीं चाहता । तब दाऊदयाल उसे समझाते हुए यों कहता है-
      मैं तुम्हारा कर्जदार हूँ, तुम मेरे कर्जदार नहीं हो । तुम्हारी गऊ अब तक मेरे पास है, उसने कम से कम मुझे आठ सौ रुपये का दूध दे दिया है, दो बछड़े नफे मे अलग । अगर तुमने यह गऊ कसाइयों को दे दी होती, तो मुझे इतना फायदा क्यों होता ? तुमने उस वक्त पाँच रुपये का नुकसान उठाकर गऊ मेरे हाथ बेची थी । तुम्हारी वह शराफत मुझे याद है ............ तुम शरीफ और अच्छे आदमी हो । मैं तुम्हारी मदद करने को हमेशा तैयार रहूँगा ।
      रहमान महसूस करता है कि सामने कोई फरिश्ता बैठा हुआ है । वह अपने आपको दाऊदयाल का गुलाम मानता है ।
      लेकिन दाऊदयाल रहमान को अपना दोस्त मानता है । वे स्पष्ट करते है कि “गुलाम छुटकारा पाने केलिए जो रुपये देता है उसे मुक्तिधन कहते हैं । तुम बहुत पहले “मुक्तिधन” अदाकार चुके हो । अब भूलकर भी यह शब्द मुँह से न निकालना ।
विशेषताएँ :
      मुक्तिधन नामक कहानी का कथावस्तु भारतीय किसानों की आर्थिक दुर्दशा तथा महाजनी सभ्यता के शोषण के परिवेश पर आधारित है ।
      भारत वर्ष के अनेक व्यवसायों में अत्यन्त लाभदायक लेन-देन के व्यवसाय की आधार शीला पर कथानक का घटनाक्रम चलता है । इस लेन-देन के जीवंत रूप से कहानी के आरम्भ में ही परिचित होते हैं ।
      रहमान की पारिवारिक स्थिति, आर्थिक दुर्दशा, खेती-बाड़ी में प्राप्त अनेक कठिनाइयाँ, रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास सभी का चित्रण प्रासंगिक एवं सहज रूप से पाया जाता है । रहमान अनेक कठिनाइयों से आक्रमान्त एवं पीड़ित था, गरीबी की विडम्बना उसके पीछे चलती रहती है । इस कारण वह दाऊदयाल का कर्ज अदा नहीं कर सकता है । उसकी विवशता कहानी में अनेक संदर्भों में दिखाई देती है ।
      दाऊदयाल का चरित्र कहानी का दूसरा पक्ष है । विपत्ति में पड़ा रहमान अपने घर की लक्ष्मी जैसी गाय विवश हो कर जब पाँच रुपये के घाटे में बेचने केलिए तैयार होता है अब उसके सौजन्य एवं सहृदयता से मुग्ध होता है । इसी कारण वह उसकी सहायता करने को तैयार होता है और आखिर गाय बेचना ही मुक्तिधन कहते हुए उसे अपना दोस्त स्वीकार करता है ।
      मानवीय प्रवृत्तियों में उदारता और मानवता का क्रमिक विकास दाऊदयाल के पात्र में क्रमश: पाया जाता है । पात्रों के चरित्र-चित्रण में नाटकीयता है तथा कथोपकथन का आश्रय लिया गया है ।
      कहानी में घटनाओं के क्रम एवं कथावस्तु की एकसूत्रता, ग्रामीण जीवन एवं खेती बाड़ी की कठिनाइयों का यथार्थ चित्रण, महाजनों के लेनदेन पर व्यंग, कहानी के दो प्रधान पात्र- दाऊदयाल और रहमान- के चरित्रों के उज्ज्वल पक्षों का सजीव चित्रण; पात्रानुकूल भाषा शैली, कथोपकथन की सजीवता, समसामयिक समाज का यथार्थ चित्रण- इस कहानी की प्रमुख विशेषता हैं । दोनों पत्रों के चरित्रों में अभिव्यक्त उदारतापूर्ण व्यवहार, शोषक और शोषित में अपूर्व सामंजस्य की स्थापना कहानी का मार्मिक उपसंहार है, जो पाठकों के मन में एक आदर्शमय सामाजिक स्थिति का चित्र उपस्थित करता है ।                   

Comments

  1. I am very much impressed by your attempt Friend

    ReplyDelete
  2. Slots to play on the Go! - Dr.MCD
    › apps › 광주 출장샵 › apps › › apps › Aug 24, 2021 — Aug 영주 출장안마 24, 2021 In this article, we will be taking a look 공주 출장마사지 at a collection of the most popular slots games on the market for your 순천 출장마사지 PC at the moment, 충청남도 출장마사지 specifically

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Hindi department activities from 2015-19

Department Activities: 2018-19 s.no. Date Name of the Activity Details 1. 23.04.2018 Board of Studies Meeting For I and III Semesters Chairman: Dr. B. Geetha Devi, Dept. of Hindi, Govt. College(A), Rjy University Nominee: Dr. V. Vallabha Rao (Retd), Dept. of Hindi, Andhra Lyola College, Vijayawada. Subject Experts: S. Sarala, SKVT College, Rjy V. Uma Jyothi, SKR College, Rjy Student Nominee: U. Bala Vamsi Krishna, M.A. 2. 30.7.2018 Virtual Class Topic: हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास Delivered by: डॉ . बी . ग़ीता देवी , प्राध्यापिका ,   सरकारी कलाशाला ( स्वायत्त ), रजमहेंद्रवरम 3. 30.7.2018 Guest Lecture Topic: भक्तिकालीन परिस्थितियाँ Delivered by: डॉ . के . नागेश्वरा राव , वरिष्ठ     प्राध्यापक , वय एन कलाशाला ( स्वायत्त ),   नरसापूर , पू . गो . जिला , आन्ध्र प्रदेश 2017-18 s.no. Date Name of the Activity Details

Question Bank for I and II Year

Government College (Autonomous), Rajamahendravaram Department Of Hindi I   B.A., B.Com, B.SC I year (I Semester) Question Bank – 2018-19 I Imp Questions : 1. साहित्य किसे कहते हैं ? इसका शास्त्र से क्या संबंध है ? 2. साहित्य की जीवन में क्या आवश्यकता है ? साहित्य व्दारा सभ्यता की परीक्षा किस प्रकार हो सकती है ?   3. वीरता किसे कहते हैं ? ‘ झूठी वीरता ’ और ‘ सच्ची वीरता ’ में क्या अंतर है ? 4. मित्र बनाते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? 5. मित्रता की धुन किस अवस्था में सबसे अधिक होती है ? 6. ‘ मुक्तिधन ’ कहानी के शीर्षक की युक्ति की समीक्षा कीजिए । (अथवा)    ‘ मुक्तिधन ’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए । 7. रहमान का चरित्र-चित्रण कीजिए । (अथवा)   ‘ मुक्तिधन ’ में रहमान पात्र कैसा है ? 8. गूदड साई का चरित्र चित्रण लिखिए । II Imp Essays : 1. साहित्य की महत्ता 2. मित्रता 3. मुक्तिधन 4 . उसने कहा था                    III वाक्यों को शुद्द कीजिए : A) 1. राघव पुस्तक पढा ।   राघव ने पुस्तक पढी । 2. उसने सौ रुपये पूछा ।